011- 07- 22धारावाहिक मकाफात - ए - अमल episode 14
तबरेज़ अपने दोस्त जुनेद की बहन की शादी की वजह से ज्यादा तर कामों में उसकी मदद कर रहा था जिस वजह से वो दुकान पर भी थोड़ा देर से आ रहा था ।
आज अनुज दोपहर बाद जब दुकान पर आया तब वो थोड़ा बुझा बुझा सा था ।
तबरेज़ ने जब उसको इस तरह देखा तो उससे पूछा बैठा " अनुज क्या हुआ कोई परेशानी है, काफी परेशान नज़र आ रहे हो "
अनुज ने पहले तो बात को टालना चाहा लेकिन तबरेज़ ने जब ज्यादा इसरार किया तो अनुज बोल पड़ा " तबरेज़ भाई पिता जी की थोड़ी तबीयत ख़राब है उन्हें पथरी है जिसका इलाज बहुत पहले से चल रहा था लेकिन अब डॉक्टर ने ऑपरेशन का कह दिया है और मेरी माँ से कहा था की इनका ऑपरेशन जल्द नही किया तो कुछ भी हो सकता है ।
मेरी माँ रिश्तेदारों के घर गयी थी लेकिन वहा भी नाकामी हाथ लगी और उन्होंने अपनी हज़ारो परेशानिया बता डाली जिसके बाद मेरी माँ ने उनसे पैसे नही मांगे और अपने कंगन गिरवी रख दिए है उन्हें गिरवी रखने के बाद भी 20000 रूपये कम पड़ रहे है । बस अब हम सब भगवान भरोसे बैठे है शायद कोई करिश्मा हो जाए।
तबरेज़ ने उसकी बात सुनी और उसके कांधे पर हाथ रख कर बोला " अनुज तुम मेरे छोटे भाई की तरह हो तुम्हारे घर की परेशानी मेरी परेशानी है , तुम परेशान मत हो मैं कही ना कही से कोई ना कोई बंदोबस्त करके देता हूँ, मेरे पास पैसे थे लेकिन मेने तुम्हारे आरिफ भाई को दुकान करा दी और अब जुनेद भाई की बहन की शादी है उसमे पैसे खर्च हो गए लेकिन तुम परेशान मत हो मैं कही ना कही से कोई बंदोबस्त करता हूँ "
अनुज ने उसे गले लगा लिया उसकी आँखों में आंसू थे वो बोला " धन्यवाद तबरेज़ भाई इस तरह की बात तो हमारे रिश्तेदारों ने भी नही कही मेरी मम्मी से जिन जिन के भी घर मैं और मेरी माँ गए पैसे लेने उन्होंने साफ साफ लफ्ज़ो में मना कर दिया "
"रो मत अनुज चलो अब आंसू साफ करो और जाकर अपने लिए साद भाई के लिए और मेरे लिए चाय लेकर आओ ये लो पैसे थकान हो रही है बहुत " तबरेज़ ने कहा
अनुज पैसे लेकर चाय लेने चला गया ।
तबरेज़ ने अनुज से वायदा तो कर लिया था पैसे देने का लेकिन उसे खुद नही पता था की वो उसे पैसे कहा से लाकर देगा।
साद ने उन दोनों की बाते सुन ली थी तब ही वहा पर एक आदमी आया जिसे अपनी गाड़ी के लिए एक इंजन खरीदना था । अनुज भी चाय लेकर आ गया था ।
उनकी दुकान पर कुछ पुराने लेकिन अच्छे इंजन मौजूद थे तबरेज़ ने वो इंजन दिखाए जिनमे से एक इंजन उसकी गाड़ी का ही था और उसने वो 40000 हज़ार रूपये में खरीद लिया।
तबरेज़ ने वो पैसे साद को रखने के लिए दिए और उसने उन्हें अपने पास रखी अलमारी में रख दिए । अनुज उन पैसो को देख रहा था उसे ऐसा करते देख साद ने देख लिया अनुज अभी भी परेशान था अपने पिता को लेकर उसका मन काम में नही लग रहा था वो पैसो का बंदोबस्त करने के बारे में ही सोच रहा था ।
साद जिसे मौका मिल चुका था अनुज को निकालने का उसके शातिर दिमाग़ ने खिचड़ी पकाना शुरू कर दी थी और अब वो बस तबरेज़ को बाहर भेजनें का इंतज़ार कर रहा था ।
और उसकी वो मनोकामना भी पूरी हुयी जब तबरेज़ के पास किसी का फ़ोन आया और वो बाहर चला गया अब दुकान पर सिर्फ और सिर्फ अनुज और साद बैठे थे ।
साद का शातिर दिमाग़ साजिश रचने लगा और अनुज को अपने पास बुला कर बोला " अनुज तुम मेरे छोटे भाई जैसे हो, जो कुछ भी तुमने तबरेज़ भाई से कहा था अपने पिता की बीमारी के बारे में वो सब मेने सुन लिया था । अनुज मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ ताकि तुम्हारे पिता जल्द ठीक हो जाए लेकिन मेरे पास इतने पैसे नही है लेकिन मैं तुम्हे दुकान के इन पैसो में से पैसे दे देता हूँ और घर जाकर अब्बू से कह दूंगा की मेने लिए है और जल्द लोटा दूंगा । मेरे लिए तुम्हारे पिता की जान से बढ़ कर कोई चीज अहम् नही।
बस तुम किसी से कहना नही कि ये पैसे मेने तुम्हे दिए थे "
"भ,,,, भ,,, भाई लेकिन ये पैसे मैं कैसे ले सकता हूँ ये पैसे तो उस्ताद के है उनसे बिना पूछे मैं कैसे ले सकता हूँ नही साद भाई " अनुज ने कहा
"अरे अनुज तुम बहुत भोले हो, ये दुकान किसकी है मेरे अब्बू यानी तुम्हारे उस्ताद कि, और हम दोनों उनके बेटे है तो इस दुकान की हर चीज हमारी ही तो है और वैसे भी ये पैसे मैं अब्बू से उधार लेकर तुमको दे रहा हूँ जो की मैं उन्हें लोटा दूंगा " साद ने कहा
"पर भाई , तबरेज भाई से पूछ लू " अनुज ने कहा
"पर वर कुछ नही, और वैसे भी तबरेज़ भाई किया कहेँगे दुकान का मालिक तो मैं हूँ, जब मैं तुम्हे पैसे दे रहा हूँ तब तुम्हे किसी से पूछने की कोई ज़रुरत नही ये लो पैसे और अपने बैग में रख लो और यहाँ आकर बैठ जाओ मैं जब तक थोड़ा बाहर होकर आता हूँ और ये रखो चाबी गल्ले की " साद ने उससे कहा
अनुज बेचारा उसकी चिकनी चुपड़ी बातो में आ गया वो नही जानता था की उसकी मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा है। उसने पैसे लेकर अपने बैग में रख लिए और गल्ले की चाबी लेकर वहा पड़ी कुर्सी पर बैठ गया । वो खुश था की उसके पिता का इलाज हो सकेगा आसानी से।
साद जो की उसे इस तरह बोतल में उतार कर बेहद खुश था और अब बस वो तबरेज़ के आने का इंतज़ार कर रहा था वो उसे वहा छोड़ कर बाहर आ गया ।
अब दुकान पर सिर्फ अनुज बैठा था ।
थोड़ी देर बाद तबरेज़ आ पंहुचा उसे आता देख साद भी पीछे से दुकान की और जाने लगा।
अनुज ना जाने गल्ले की तरफ सर झुकाये ना जाने किया कर रहा था दरअसल जो चाबी साद उसे देकर गया था वो गल्ले की थी ही नही वो तो किसी और चीज की चाबी थी तबरेज के आने से पहले वहा साद की तरफ से भेजा गया एक लड़का आया था जिसे 500 का खुला चाहिए था इसलिए अनुज जब उसे खुले पैसे देने के लिए ग़ल्ला खोलता है तब चाबी उसमे अटक जाती है जिसे अनुज निकालने की कोशिश करता है लेकिन वो अटक जाती है ।
तबरेज़ जैसे ही दुकान में घुसा उसने उसे ऐसा करते देखा तो बोला " अनुज क्या कर रहे हो ये और साद कहा है "
इससे पहले अनुज कुछ कह पाता तब ही साद वहा आ पंहुचा और बोला " ये क्या कर रहा है मेरे पीठ पीछे मैं तो इसको बैठा कर चाय पीने गया था और चाबी यही भूल गया था "
अनुज घबराते हुए " जे,,,, जे,,, जैसा आप लोग समझ रहे है वैसा कुछ नही है मैं तो उस लड़के को खुले पैसे देने के लिए ग़ल्ला खोल रहा था तब ही,, अनुज कुछ और कहता तब ही साद गुस्से में वहा आया और बोला
झूठ बोल रहा है चाबी फस गयी अब ही खोल कर देखता हूँ अगर पैसे पूरे हुए तब तो सही वरना तेरी खेर नही आज पैसे चुराता है
अनुज उसे इस तरह देख समझ नही पा रहा था की अब ही थोड़ी देर पहले तो ये उसके साथ कितने अच्छे से बाते कर रहा था लेकिन अब ऐसा किया हो गया ।
साद ने बड़ी चालाकी से उस चाबी को निकाल कर अपनी जेब से गल्ले की असली चाबी निकाली और ग़ल्ला खोल कर पैसे गिने तो उसमे से 20000 रूपये कम थे ।
साद ने उसके खींच कर तमाचा मारा और कहा "चोर, जिस थाली में खाता है उसी में छेद करता है निकल जा यहाँ से "
तबरेज ने साद को रोका ऐसा करने से और अनुज के पास गया .
अनुज तबरेज़ को देख रोते हुए बोला " तबरेज़ भाई मेने चोरी नही की मैं चोर नही हूँ "
तू चोर नही है क्या तुझे पैसो की ज़रुरत नही थी अपने पिता के ऑपरेशन के लिए इससे पहले वो कुछ और कहता तब ही हुसैन साहब और उनकी बीवी रुकय्या वहा आ पहुचे ।
जो की एक मिली झूली साजिश के तहत वहा लाये गए थे साद और उसकी अम्मी की
साद ने अपनेअब्बू को देख उन्हें बताया कि अनुज ने पैसे चुराए है जो कि इस गल्ले में रखे थे क्यूंकि इसे अपने पिता का इलाज कराना था वो पैसे सुबह एक इंजन बिकने पर मिले थे
अनुज हुसैन साहब के पास आया और बोला " उस्ताद मेने पैसे नही चुराए है "
"अब ही दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा इसका बस्ता चेक करो जरूर उसमे ही रखे होंगे इसने पैसे " साद ने कहा
साद उसका बस्ता खोलता है जिसमे 20000 रूपये रखे थे। जिसे देख सब के होश उड़ गए ।
तब ही रुकय्या बोली " देख लिया आपने इन पर अंधा भरोसा करने का अंजाम अभी तक तो सिर्फ छोटा मोटा हाथ मारते थे और आज देखो 20000 रूपये ही चुरा लिए इस चोर ने "
"मामी, आप सोच समझ कर बात कीजिये ये कोई गलत फ़हमी भी हो सकती है " तबरेज़ ने कहा जो अब तक चुप बैठा था
"केसी गलत फ़हमी भांजे साहब , पैसे उसके बसते से निकले है और हम सब ने देखे है अपनी आँखों से " रुकय्या ने कहा
"आँखों देखा हर बार सही हो ऐसा जरूरी तो नही, माना अनुज को पैसो की ज़रुरत थी लेकिन वो चोरी करेगा मैं नही मान सकता उसे फसाया गया है " तबरेज़ ने कहा
"फसाया नही गया है आज चोर खुद फस गया है जो पहले छोटी छोटी चोरिया करते थे वो आज बड़ी चोरी करते समय फस गए " रुकय्या और कुछ कहती तब ही तबरेज बोल उठा
बस मामी बहुत हुआ, आप के कहने का मतलब है की हम दोनों चोर है
"मेने ऐसा तो कुछ नही कहा जो तुम्हे इतना बुरा लग रहा है जो देखा वही कहा है मेने " रुकय्या ने कहा
"बस करो तुम सब मुझे अनुज से पूछना है की असल बात क्या हुयी थी यहाँ अगर उसने पैसे नही चुराए है तब ये पैसे उसके बसते में कैसे आये बताओ अनुज " हुसैन साहब ने कहा
ये सुन रुकय्या ने साद की तरफ देखा और बोली " ये चोर क्या सफाई देगा उल्टा किसी और पर इल्जाम लगा देगा "
"तुम चुप जाओ थोड़ी देर के लिए मुझे अनुज से पूछना है" हुसैन साहब ने कहा
अनुज डरते हुए बोला " उस्ताद मेने चोरी नही की, मेरे पिताजी बीमार जरूर है और उन्हें पैसो की भी ज़रुरत है लेकिन मेने पैसे नही चुराए वो पैसे तो मुझे साद भाई ने दिए थे " इससे पहले अनुज कुछ और कहता तब ही साद ने उसके मुँह पर चाटा मारा और कहा
झूठ बोलता है अपनी चोरी का इल्जाम मुझ पर लगा रहा है , मेने तुझे कब दिए पैसे और आखिर मैं तुझे पैसे क्यू दूंगा चोर कही के।
तबरेज़ ने उसे पिटता देख साद के खींच कर थप्पड़ मारा और कहा " वो चोर नही है ज़रूर किसी ने उसे फसाया है वो चोर नही हो सकता "
"देखा आपने हुसैन साहब जिन बच्चों को आपने अपने बच्चों से ज्यादा प्यार किया अपनी औलाद समझा उन्हें अपनी दुकान में जगह दी वो ही आज इतना बड़ा हो गया की आप के बेटे को थप्पड़ मार कर उसे गलत साबित करने पर तुला है वो भी इस चोर लड़के के लिए जिसके ताल्लुक हमारे मजहब से भी नही है ये इस लड़के का साथ दे रहा है जिसको रंगे हाथो हम सब ने पकड़ा जो की गल्ले से पैसे निकाल कर अपने बसते में रख कर घर ले जा रहा था " रुकय्या ने कहा
"मामी, आप मुझसे बड़ी है इसलिए आपका लिहाज कर रहा हूँ लेकिन अब अगर आपने इसको चोर कहा तो मुझसे बुरा कोई नही होगा और रही बात साथ देने की तो मैं हमेशा सच का साथ देता हूँ फिर चाहे वो इंसान मेरे मजहब का हो या किसी दूसरे मजहब का। अनुज चोर नही है मैं इसे बहुत दिनों से जानता हूँ ये मेरे छोटे भाई जैसा है मुझे इसपर खुद से ज्यादा भरोसा है । इसके पिता बीमार है लेकिन फिर भी ये चोरी जैसा गलत काम हर गिज़ नही करेगा इसे फसाया गया है और इस बात का पता बहुत जल्द आप सब को लग जाएगा " तबरेज़ ने कहा
"तुम्हारा मतलब है की मेरे बेटे ने इसे फसाया है क्यूंकि दुकान पर तुम तीनो के अलावा और कोई नही होता देख लिया हुसैन साहब आज आपके ही खून को गन्दा साबित किया जा रहा है इनका कहना है कि ये सब हमारे बेटे ने किया है आपके खून ने आप कुछ बोलते क्यू नही कुछ बोलिये " रुकय्या ने कहा
हुसैन साहब ने तबरेज़ की तरफ देखा और फिर अपने बेटे साद की तरफ देखा और बोले " साद सच सच बताओ इसमें तुम्हारा तो कोई हाथ नही मैं अब ही पुलिस को बुला लेता हूँ वही आ कर तुम सब के मुँह से सच उगल वा लेगी "
साद ने पुलिस का नाम सुना तो घबरा कर अपनी अम्मी की तरफ देखा .
रुकय्या भी घबराते हुए बोली " ये क्या कह रहे है आप पता भी है कितनी बदनामी होगी जब हम सब ने अपनी आँखों से देख लिया है की चोर कौन है तो फिर इस तरह पुलिस बुलाने की क्या ज़रुरत है हम सब जानते है की ये सामने सर झुकाये खड़ा लड़का ही चोर है अगर करना है तो इसे पुलिस के हवाले करे ताकि इसे देख कर और लोगो को भी सबक मिल जाए कि चोरी का अंजाम केसा होता है "
"बस मामी बहुत हुआ अब इसके आगे एक लफ्ज़ भी और बोला आपने तो मैं भूल जाऊंगा कि आप मेरे मामू कि बीवी है " तबरेज़ ने कहा
तबरेज़ को इस तरह बोलते देख अपनी बीवी से हुसैन साहब ने खींच कर चाटा मारा और कहा " तुम्हारी हिम्मत कैसे हुयी मेरी बीवी से इस तरह बात करने कि तुम अपनी तहजीब भूल चुके हो बिलकुल औरतों से बात करने कि "
. उसे चाटा पढ़ते देख साद को सुकून मिला उसका आज बदला पूरा हुआ उस दिन का जब उसके अब्बू ने उस पर हाथ उठाया था
तबरेज़ जो कि अपने गाल पर हाथ रखे हुए था और सकते में था उसकी आँखों में आंसू छलक आये और वो बोला " मामू आपने मुझे थप्पड़ मारा, मामू मेरा यकीन कीजिये अनुज चोर नही है वो किसी कि गंदी साजिश का शिकार हो रहा है किसी ने उसकी मजबूरियो के साथ खेला और उसे फसा दिया है मामू आपको दिखाई क्यू नही दे रहा है "
"बस करो तुम अब, हम सब ने अपनी आँखों से देखा है उसके बसते से पैसे निकलते हुए अगर उसने पैसे नही चुराए होते तो क्या उसके बसते से निकलते और वो उल्टा मेरे बेटे पर इल्जाम लगा रहा है अगर उसने चोरी कि है तो मुझसे माफ़ी मांग ले मैं माफ कर दूंगा गलती इंसान से ही होती है और मजबूरी सब कुछ करा लेती है इंसान से चोरी जैसा गलत काम भी " हुसैन साहब ने कहा
"गलती आप कर रहे है मामू, एक बेगुनाह को इस तरह सब के सामने जलील और रुस्वा करके उसके ऊपर चोरी का इल्जाम लगा कर माफ़ी तो आपको उससे मांगनी चाहिए क्या पता जो आपको दिखाया गया है वो सब एक साजिश हो हर बार आँखों देखा और कानो सुना सही हो ये ज़रूरी तो नही "तबरेज ने कहा
"सुना आपने , अपने भांजे को वो हम सब को गुनेहगार साबित कर रहा है ये जानते हुए भी कि असली गुनेहगार कौन है । हमारा साथ देने के बजाय ये उस लड़के का साथ दे रहा है और अपने ही मामू के बेटे पर इल्जाम लगा रहा है और उसे झूठा बना रहा है और इस लड़के को बचा रहा है । जबकी असल बात तो ये है कि जब से साद यहाँ आया है आपकी गैर मौजूदगी में तब से इन दोनों कि जेब गर्म नही हो रही थी इसलिए हो सकता है इन दोनों ने मिलकर ही ग़ल्ला साफ करना चाहा हो और अब जब पकडे गए तो एक दूसरे का साथ दे रहे है " रुकय्या ने कहा
"बस मामी बहुत हुआ आप हम दोनों को चोर कह रही है अब हमारा इस दुकान पर काम करने का कोई मकसद नही रहा जब हमें यहाँ चोर समझा जा रहा है पापा के इन्तेकाल के बाद ये दुकान ही थी जिस पर काम करके मेने अपने घर वालो को उस बुरे वक़्त से निकाला ये वर्क शॉप नही मेरे लिए सब कुछ थी इसे मेने कभी अपने मामू कि दुकान नही बल्कि अपनी दुकान समझ कर चलाया एक एक पायी जो भी दिन भर में कमाई शाम को सब मामू के हाथ में रख दी एक पैसा भी इधर से उधर नही किया.
लेकिन आज वक़्त इतना बदल गया कि आज मेरी वफादारी और ईमानदारी का बदला इस तरह मुझे मिल रहा है की आज हमें यहाँ से चोर कह कर निकाला जा रहा है । मामू आप को मेने कभी अपना मामू नही पिता समझा जो हमेशा मेरे सर पर साया किए रहते थे ।
मामू मेरी बस इतनी सी दुआ है की जब आपकी आँखों पर पड़ा ये साजिशी पर्दा हट जाएगा और आपको अपनी गलती का एहसास होगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। मामू मैं अब इस दुकान पर काम नही करना चाहता जहाँ मुझ पर और मेरे छोटे भाई जैसे इस लड़के पर चोरी का इल्जाम लगाया गया हो जहाँ इज़्ज़त नही वहा काम करने का कोई फायदा नही ये लीजिये आज के पैसे और बाकी गल्ले में है "तबरेज ने कहा
ठीक है,ठीक है अब जाओ यहाँ से अब मेरे बेटे देख लेंगे इस दुकान को तुम जेसो की अब यहाँ कोई ज़रुरत नही जो अंदर ही अंदर दीमक की तरह खोखला करदे "रुकय्या ने कहा
हुसैन साहब खामोश थे उन्हें गुस्सा आ रहा था की उनका भांजा एक गैर मजहबी लड़के का साथ दे रहा था उनका साथ देने के बजाये और उनके ही बेटे को गलत बता रहा था इसलिए उन्होंने उसे रोका तक नही
तबरेज की आँखों में आंसू थे अनुज भी उसके साथ था और कह रहा था " तबरेज भाई मैं चोर नही हूँ मेने पैसे नही चुराए थे "
मैं जानता हूँ मेरे भाई तुमने पैसे नही चुराए ना ही आज और ना ही इससे पहले कभी मुझे तुम पर पूरा भरोसा है तुम परेशान मत हो हम कोई ना कोई बंदोबस्त जरूर कर लेंगे लेकिन तुम मुझे सब कुछ शुरू से बताओ कि आखिर वो पैसे तुम्हारे बसते से कैसे निकले।
हुसैन साहब वहा से चले गए रुकय्या और साद बेहद खुश थे और बोले " एक तीर से दो शिकार कर दिए हम तो पहल उस छोटे प्यादे को निकालना चाहते थे लेकिन ये क्या उसके साथ साथ बड़ा प्यादा अपने आप ही चला गया "
"अब बस देखती जाए अम्मी मैं कैसे इस दुकान से पैसे कमा कर आप को लाकर देता हूँ और अमीर बनता हूँ " साद ने कहा
"नज़र ना लगे मेरे बेटे को किसी हासिद कि, बस तू दिन रात मेहनत करके इस दुकान से सोना निकाल अब तो रास्ते कि रूकावटे भी चली गयी अब बस तुम दोनों भाई ही इस दुकान के असल वारिस हो " रुकय्या ने कहा
अब क्या मोड़ लेगी तबरेज़ कि ज़िन्दगी कैसे वो इस परेशानी से अपने आप को निकालेगा, आखिर अब कौन उसे काम पर रखेगा या फिर चोरी के इल्जाम कि वजह से वो यूं ही दरबदर भटकता रहेगा जानने के लिए पढ़ते रहिये हर सोमवार
shweta soni
19-Jul-2022 02:53 AM
Nice 👍
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Rahman
18-Jul-2022 08:36 PM
Amazing
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Gunjan Kamal
12-Jul-2022 12:12 AM
शानदार भाग
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